Shiv Ashtak, शिव अष्टकम् स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित (शंकराचार्य द्वारा रचित), प्रभु प्राणनाथ विभुं विश्वनाथं ( Shiv )
शिव अष्टक स्तोत्र
शिव अष्टकम्
भगवान शिव को समर्पित शिव अष्टक आठ
स्तोत्रों से बना है जिसकी रचना आदिगुरू शंकराचार्य ने की थी| शिवजी को देवों का देव महादेव, भोला, शंकर, रूद्र, भैरव, नीलकंठ और पशुपतिनाथ आदि नामों
से जाना जाता है| इस स्तोत्र मे भगवान शिव से प्रार्थना करते हुए उनके अद्भुत
स्वरूप का वर्णन किया गया है| उनको सभी जीवो, भूतों, गणों, देवताओं, ब्रह्मा और विष्णु आदि मे श्रेष्ठ बताया गया है| इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से मनुष्य को फलदायी जीवन, उत्तम
पुत्र, धन और पत्नी की प्राप्ति होती है|
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शिव अष्टकम् स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित
प्रभुं प्राणनाथं विभुं
विश्वनाथं जगन्नाथनाथं
सदानन्दभाजम्।
भवद्भव्यभूतेश्वरं
भूतनाथं शिवं शङ्करं शंभुमीशानमीडे।। 1
अर्थ:- मै शिव, शंकर, शम्भु से प्रार्थना करता हू जो हमारे जीवन के भगवान है, विभु है, दुनिया के भगवान है,
विष्णु (जगन्नाथ) के भगवान है, जो हमेशा सुख में निवास करते
है और जो हर चीज़ को प्रकाश देते है| जो जीवों के, भूतो के और
सभी के स्वामी है|
गले रुण्डमालं तनौ
सर्पजालं महाकालकालं
गणेशाधिपालम्।
जटाजूटगङ्गोत्तरङ्गैर्विशालं शिवं शङ्करं शंभुमीशानमीडे।। 2
अर्थ:- मै आपसे प्रार्थना करता हू, शिव, शंकर, शम्भु
जिसके गले में खोपड़ी की माला है, जिसके शरीर के चारो ओर सर्पो का
जाल है, जो अपार विनाशक काल के संहारक है, जो गणेश के स्वामी है| उनके
सिर पर गंगा की लहरों के गिरने से उलझे हुए बाल फैले हुए है, और जो
सभी के भगवान है|
मुदामाकरं मण्डनं
मण्डयन्तं महामण्डलं भस्मभूषाधरं तम्।
अनादिं ह्यपारं
महामोहमारं शिवं शङ्करं
शंभुमीशानमीडे।। 3
अर्थ:- मै आपसे प्रार्थना करता हू, शिव, शंकर, शम्भु, जो
संसार में खुशियों को बिखेरते है, जो ब्रह्मांड को अलंकृत करते है, जो
स्वयं विशाल ब्रह्मांड है, जो भस्म को अपने शरीर पर धारण
करते है, जिनका कोई प्रारंभ नही, जिनका कोई माप नही, जो
सबसे बड़ी आसक्तियों को दूर करते और जो सभी के भगवान है|
वटाधोनिवासं
महाट्टाट्टहासं महापापनाशं सदा
सुप्रकाशम्।
गिरीशं गणेशं सुरेशं
महेशं
शिवं शङ्करं शंभुमीशानमीडे।। 4
अर्थ:- मै आपसे प्रार्थना करता हू, शिव,
शंकर, शम्भु, जो एक वट (बरगद) वृक्ष के नीचे
रहते है, जिनके मुख मंडल पर प्रसन्नता है, जो सबसे बड़े पापो का नाश करते है, जिनके
मुख पर तेज है, जो हिमालय के भगवान है, विभिन्न गण और देवताओं के भगवान
है, जो सभी के भगवान है|
गिरीन्द्रात्मजासङ्गृहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदा सन्निगेहम्।
परब्रह्म
ब्रह्मादिभिर्वन्द्यमानं शिवं शङ्करं शंभुमीशानमीडे।। 5
अर्थ:- हिमालय की बेटी के साथ अपने शरीर
का आधा हिस्सा साँझा करने वाले शिव, शंकर, शम्भु
से में प्रार्थना करता हू, जो एक पर्वत (कैलाश) में स्थित है, जो
हमेशा उदास लोगों के लिए एक सहारा है, जो अतिमानव है, जो
पूजनीय है जो ब्रह्मा और अन्य सभी के प्रभु है|
कपालं त्रिशूलं कराभ्यां
दधानं पदांभोजनम्राय कामं
ददानम्।
बलीवर्दयानं सुराणां प्रधानं शिवं शङ्करं शंभुमीशानमीडे।। 6
अर्थ:- मै आपसे प्रार्थना करता हू, शिव, शंकर,
शम्भु, जो अपने हाथो में कपाल और त्रिशूल रखते है, जो अपने विन्रम भक्तो की इच्छाओ
को पूरा करते है जो ईमानदारी से उनके चरणकमलो की पूजा करते है, जो
बैल (नंदी) पर सवार है, जो सभी देवताओं के प्रधान है|
शरच्चन्द्रगात्रं
गुणानन्दपात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं
धनेशस्य मित्रम्।
अपर्णाकळत्रं चरित्रं
विचित्रं शिवं शङ्करं
शंभुमीशानमीडे।। 7
अर्थ:- मै आपसे प्रार्थना करता हू, शिव, शंकर, शम्भु, जिनका
चेहरा शीत चन्द्रमा जैसा है, जो गण के सुख का विषय है, जिसके
तीन नेत्र है, जो शुद्ध है, जो कुबेर के मित्र है| जिनकी
पत्नी अपर्णा (पार्वती) है, जिनकी शाश्वत विशेषताए है और जो
सभी के स्वामी है|
हरं सर्पहारं
चिताभूविहारं भवं वेदसारं सदा निर्विकारम्।
श्मशाने वसन्तं मनोजं
दहन्तं शिवं शङ्करं शंभुमीशानमीडे।। 8
अर्थ:- मै आपसे प्रार्थना करता हु, शिव, शंकर, शम्भु, जो
“हर” के रूप में जाने जाते है, जिनके पास सर्पो की माला है, जो
श्मशान घाटों में निवास करते है, जो मन में उत्पन्न कामनाओ को
प्रज्वलित करते है, और जो सभी के स्वामी है|
स्तवं यः प्रभाते नरः
शूलपाणेः पठेत्सर्वदा भर्गभावानुरक्तः।
स पुत्रं धनं
धान्यमित्रं कळत्रं विचित्रैः समाराद्य मोक्षं प्रयाति।। 9
अर्थ:- जो लोग हर सुबह त्रिशूल धारण किये
शिव की भक्ति के साथ इस प्रार्थना का जाप करते है, वो एक कर्तव्यपरायण पुत्र, धन,
मित्र, जीवनसाथी और एक फलदायी जीवन पूरा करने के बाद मोक्ष को प्राप्त करते है|
शिव शम्भो गौरी शंकर आप सभी को उनके प्रेम का आशीर्वाद दे और अपनी देखरेख मे उनकी
रक्षा करे|
।। इति श्रीशिवाष्टकं
संपूर्णम् ।।
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