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Ganapathi Sahastranama Stotram in Hindi – श्री गणपति सहस्रनाम स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

  Ganapathi Sahastranama Stotram in Hindi – श्री गणपति सहस्रनाम स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित     व्यास उवाच अर्थ:- व्यास जी बोले, हे! लोकानुग्रह में तत्पर ब्रह्माजी गणेश ने अपने कल्याणकारी सहस्त्र नामो का उपदेश कैसे दिया वह मुझे बतलाइये| कथं नाम्नां सहस्रं स्वं गणेश उपदिष्टवान् । शिवाय तन्ममाचक्ष्व लोकानुग्रहतत्पर ॥ १ ॥ ब्रह्मोवाच : देवदेवः पुरारातिः पुरत्रयजयोद्यमे । अनर्चनाद्गणेशस्य जातो विघ्नाकुलः किल ॥ २ ॥ मनसा स विनिर्धार्य ततस्तद्विघ्नकारणम् । महागणपतिं भक्त्या समभ्यर्च्य यथाविधि ॥ ३ ॥ विघ्नप्रशमनोपायमपृच्छदपराजितः । सन्तुष्टः पूजया शम्भोर्महागणपतिः स्वयम् ॥ ४ ॥ सर्वविघ्नैकहरणं सर्वकामफलप्रदम् । ततस्तस्मै स्वकं नाम्नां सहस्रमिदमब्रवीत् ॥ ५ ॥ अर्थ:- ब्रह्मा जी बोले, पूर्व काल में त्रिपुरारी शिव ने त्रिपुरासुर तथा उसके तीनों पूरो पर युद्ध में विजय के उद्यत होने पर गणेश जी की पूजा नही की थी | अतः वे विघ्नों से व्याकुल हुए थे अतः उन्होंने अपने मन से उस विघ्न के कारण का निर्धारण करके महागणपति का भक्तिपूर्वक यथाविधि पूजन करके उनसे अपनी पराजय होने पर विघ्

महिषासुरमर्दिनी श्लोक हिंदी अर्थ सहित / अयि गिरी नन्दिनी / Aigiri Nandini, MA DURGA




महिषासुरमर्दिनी श्लोक हिंदी अर्थ सहित और इसके वाचन के लाभ   

 

महिषासुर मर्दिनी श्लोक देवी पार्वती के दुर्गा अवतार को समर्पित है इसमें देवी पार्वती के द्वारा महिषासुर नामक राक्षस का मर्दन करने के कारण उनकी स्तुति की गयी है| यह का 21 श्लोको का संग्रह है जिसमे देवी दुर्गा ने जिन असुरो को मारा था उनका वर्णन है| इसकी रचना आदिगुरू शंकराचार्यजी ने की थी|

महिषासुर को वरदान मिला था कि देवता और दानवो में उसे कोई पराजित नही कर सकता था उसने देवतओं
के साथ युद्ध में देवताओ के साथ साथ त्रिदेवो को भी पराजित कर दिया था| तब सभी देवतओं और त्रिदेवो ने मिलकर एक ऐसी स्त्री का निर्माण किया जो अत्यंत शक्तिशाली हो और जिसमे सभी देवतओं की शक्तिया समाहित हो इस तरह दुर्गा का जन्म हुआ| देवी दुर्गा अपनी दस भुजाओ में सभी देवो के दिए अस्त्र लिए हुए है जिसमे भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, शिवजी का त्रिशूल, ब्रह्माजी का कमल इंद्र का वज्र आदि शामिल है
| देवी दुर्गा ऐसी शक्तिशाली स्त्री है जिसमे सभी भगवानो के तेज और शक्तियों को सहन करने की ताकत है जो किसी भी असुर को धराशायी कर सकती है|

महिषासुर मर्दिनी का नियमित वाचन करने से हमारे अंदर किसी भी परिस्थिति का साहस के साथ सामना करने की ताकत पैदा होती हैशिव तांडव स्तोत्र की तरह इसे भी बहुत शक्तिशाली स्तोत्र माना गया है|


महिसासुरमर्दिनी श्लोक हिंदी अर्थ सहित


अयि गिरि नन्दिनी नन्दित-मेदिनि विश्व-विनोदिनि नन्दिनुते।

गिरिवर विन्ध्य-शिरोधि-निवासिनी विष्णु-विलासिनि जिष्णुनुते ।

भगवति हे शिति-कण्ठ-कुटुम्बिनि भूरि-कुटुम्बिनि भूरिकृते ।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।1।

अर्थ-  हे हिमालायराज की कन्या, विश्व को आनंद देने वाली, नंदी गणों के द्वारा नमस्कृत, गिरिवर विन्ध्याचल के शिरो (शिखर) पर निवास करने वाली, भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाली, इन्द्रदेव के द्वारा नमस्कृत, भगवान नीलकंठ की पत्नी, विश्व में विशाल कुटुंब वाली और विश्व को संपन्नता देने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली भगवती, अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


सुरवर-वर्षिणि दुर्धर-धर्षिणि दुर्मुख-मर्षिणि हर्षरते ।

त्रिभुवन-पोषिणि शंकर-तोषिणि किल्बिष-मोषिणि घोषरते ।।

दनुजनि-रोषिणि दितिसुत-रोषिणि दुर्मद-शोषिणी सिन्धु-सुते ।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।2।

अर्थ- देवों को वरदान देने वाली, दुर्धर और दुर्मुख असुरों को मारने वाली और स्वयं में ही हर्षित (प्रसन्न) रहने वाली, तीनों लोकों का पोषण करने वाली, शंकर को संतुष्ट करने वाली, पापों को हरने वाली और घोर गर्जना करने वाली, दानवों पर क्रोध करने वाली, अहंकारियों के घमंड को सुखा देने वाली, समुद्र की पुत्री हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


अयि जगदम्ब-मदम्ब-कदम्ब वनप्रिय-वासिनि हासरते ।

शिखरि-शिरोमणि तुङ्ग-हिमालय शृंग-निजालय मध्यगते ।।

मधु-मधुरे मधुकैट-भगन्जिनि कैटभ-भंजिनि रासरते ।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।3।

अर्थ- हे जगतमाता, मेरी माँ, प्रेम से कदम्ब के वन में वास करने वाली, हास्य भाव में रहने वाली, हिमालय के शिखर पर स्थित अपने भवन में विराजित, मधु (शहद) की तरह मधुर, मधु-कैटभ का मद नष्ट करने वाली, महिष को विदीर्ण करने वाली,सदा युद्ध में लिप्त रहने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


अयि शत-खण्ड विखण्डित-रुण्ड वितुण्डित-शुण्ड गजा-धिपते ।

रिपु गज-गण्ड विदारण-चण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते ।।

निजभुज दण्ड निपतित खण्ड विपातित मुंड भटाधिपते ।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।4।

अर्थ- शत्रुओं के हाथियों की सूंड काटने वाली और उनके सौ टुकड़े करने वाली, जिनका सिंह शत्रुओं के हाथियों के सर अलग अलग टुकड़े कर देता है, अपनी भुजाओं के अस्त्रों से चण्ड और मुंड के शीश काटने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


 रण-दुर्मद शत्रु-वधोदित दुर्धर-निर्जर शक्ति-भृते ।

चतुरविचार-धुरीण-महाशिव दूत-कृत प्रथमा-धिपते ।।

दुरित-दुरीह दुराशय-दुर्मति दानव-दूत कृतान्त-मते ।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।5।

अर्थ- रण में मदोंमत शत्रुओं का वध करने वाली, अजर अविनाशी शक्तियां धारण करने वाली, प्रमथनाथ (शिव) की चतुराई जानकार उन्हें अपना दूत बनाने वाली, दुर्मति और बुरे विचार वाले दानव के दूत के प्रस्ताव का अंत करने वाली, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


अयि शरणा-गत वैरि-वधूवर वीर-वराभय दायकरे ।

त्रिभुवन-मस्तक शुल-विरोधि शिरोऽधि-कृतामल शूलकरे ।।

दुमिदुमि-तामर धुन्दुभि-नादमहोमुख-रीकृत दिङ्म-करे ।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।6।

अर्थ- शरणागत शत्रुओं की पत्नियों के आग्रह पर उन्हें अभयदान देने वाली, तीनों लोकों को पीड़ित करने वाले दैत्यों पर प्रहार करने योग्य त्रिशूल धारण करने वाली, देवताओं की दुन्दुभी से 'दुमि दुमि' की ध्वनि को सभी दिशाओं में व्याप्त करने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


अयि निज-हुङ्कृति मात्र-निराकृत धूम्र-विलोचन धूम्र-शते।

समर-विशोषित शोणित-बीज समुद्भव-शोणित बीज-लते।।

शिवशिव-शुम्भ निशुम्भ-महाहव तर्पित-भूत पिशाच-रते।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।7।

अर्थ- मात्र अपनी हुंकार से धूम्रलोचन राक्षस को धूम्र (धुएं) के सामान भस्म करने वाली, युद्ध में कुपित रक्तबीज के रक्त से उत्पन्न अन्य रक्तबीजों का रक्त पीने वाली, शुम्भ और निशुम्भ दैत्यों की बली से शिव और भूत-प्रेतों को तृप्त करने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो|


धनुरनु-षङ्ग रण-क्षण-सङ्ग परिस्फुर-दङ्ग नटत्क-टके ।

कनक-पिशङ्ग पृषत्क-निषङ्ग रसद्भट-शृङ्ग हता-बटुके ।।

कृत-चतुरङ्ग बलक्षिति-रङ्ग घटद्बहु-रङ्ग रटद्ब-टुके ।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।8।

अर्थ- युद्ध भूमि में जिनके हाथों के कंगन धनुष के साथ चमकते हैं, जिनके सोने के तीर शत्रुओं को विदीर्ण करके लाल हो जाते हैं और उनकी चीख निकालते हैं, चारों प्रकार की सेनाओं [हाथी, घोडा, पैदल, रथ] का संहार करने वाली अनेक प्रकार की ध्वनि करने वाले बटुकों को उत्पन्न करने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


सुर-ललना तत-थेयि तथेयि कृताभिन-योदर नृत्य-रते ।

कृत कुकुथः कुकुथो गडदादि-कताल कुतूहल गानरते ।।

धुधुकुट धुक्कुट धिंधि-मित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते ।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।9।

अर्थ- देवांगनाओं के तत-था थेयि-थेयि आदि शब्दों से युक्त भावमय नृत्य में मग्न रहने वाली, कु-कुथ अड्डी विभिन्न प्रकार की मात्राओं वाले ताल वाले स्वर्गीय गीतों को सुनने में लीन, मृदंग की धू-धुकुट, धिमि-धिमि आदि गंभीर ध्वनि सुनने में लिप्त रहने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


जय जय जप्य जयेजय-शब्द पर-स्तुति तत्पर-विश्वनुते ।

झणझण-झिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुर-शिञ्जित-मोहित भूतपते ।।

नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटित-नाट्य सुगान-रते ।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।10।

अर्थ- जय जयकार करने और स्तुति करने वाले समस्त विश्व के द्वारा नमस्कृत, अपने नूपुर के झण-झण और झिम्झिम शब्दों से भूतपति महादेव को मोहित करने वाली, नटी-नटों के नायक अर्धनारीश्वर के नृत्य से सुशोभित नाट्य में तल्लीन रहने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहर-कान्ति-युते ।

श्रित-रजनी रजनी-रजनी रजनी-रजनी कर-वक्त्र-वृते ।।

सुनयन-विभ्रमर भ्रमर-भ्रमर भ्रमर-भ्रमराधिपते।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।11।

अर्थ- आकर्षक कान्ति के साथ अति सुन्दर मन से युक्त और रात्रि के आश्रय अर्थात चंद्र देव की आभा को अपने चेहरे की सुन्दरता से फीका करने वाली, काले भंवरों के सामान सुन्दर नेत्रों वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


सहित-महाहव मल्लम-तल्लिक मल्लित-रल्लक मल्ल-रते ।

विरचित-वल्लिक पल्लिक-मल्लिक झिल्लिक-भिल्लिक वर्ग-वृते ।।

शितकृत-फुल्ल समुल्ल-सितारुण तल्लज-पल्लव सल्ल-लिते ।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।12।

अर्थ- महायोद्धाओं से युद्ध में चमेली के पुष्पों की भाँति कोमल स्त्रियों के साथ रहने वाली तथा चमेली की लताओं की भाँति कोमल भील स्त्रियों से जो झींगुरों के झुण्ड की भांति घिरी हुई हैं, चेहरे पर उल्लास (ख़ुशी) से उत्पन्नउषाकाल के सूर्य और खिले हए लाल फूल के समान मुस्कान वाली, हे महिषासुर का मर्दन करने वालीअपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


अविरल-गण्ड गलन्मद-मेदुर मत्त-मतङ्ग-जराजपते ।

त्रिभुवन-भूषण भूतकला-निधि रूपपयो-निधि राजसुते ।।

अयि सुदतीजन लालस-मानस मोहन मन्मथ-राजसुते ।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।13।

अर्थ- जिसके कानों से अविरल (लगातार) मद बहता रहता है उस हाथी के समान उत्तेजित हे गजेश्वरी, तीनों लोकों के आभूषण रूप-सौंदर्य, शक्ति और कलाओं से सुशोभित हे राजपुत्री, सुंदर मुस्कान वाली स्त्रियों को पाने के लिए मन में मोह उत्पन्न करने वाली मन्मथ (कामदेव) की पुत्री के समान, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


कमल-दलामल कोमल-कान्ति कला-कलिता-मल भाल-लते ।

सकल-विलास कला-निलय-क्रम केलि-चलत्कल हंस-कुले ।।

अलिकुल-सङ्कुल कुवलय-मण्डल मौलि-मिलद्ब-कुलालि-कुले ।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।14।

अर्थ- जिनका कमल दल (पंखुड़ी) के समान कोमल, स्वच्छ और कांति (चमक) से युक्त मस्तक है, हंसों के समान जिनकी चाल है, जिनसे सभी कलाओं का उद्भव हुआ है, जिनके बालों में भंवरों से घिरे कुमुदनी के फूल और बकुल पुष्प सुशोभित हैं उन महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री की जय हो, जय हो, जय हो।


करमुर-लीरव वीजित-कूजित लज्जित-कोकिल मञ्जु-मते।

मिलित-पुलिन्द मनोहर-गुञ्जित रञ्जित-शैल निकुञ्ज-गते।।

निजगण-भूत महाशबरी-गण सद्गुण-सम्भृत केलि-तले।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।15।

अर्थ- जिनके हाथों की मुरली से बहने वाली ध्वनि से कोयल की आवाज भी लज्जित हो जाती है, जो [खिले हुए फूलों से] रंगीन पर्वतों से विचरती हुई, पुलिंद जनजाति की स्त्रियों के साथ मनोहर गीत जाती हैं, जो सद्गुणों से संपन्न शबरी जाति की स्त्रियों के साथ खेलती हैं उन महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री की जय हो, जय हो, जय हो।


कटित-टपीत दुकूल-विचित्र मयुख-तिरस्कृत चन्द्र-रुचे।

प्रणत-सुरासुर मौलि-मणिस्फुर दंशुल-सन्नख चन्द्र-रुचे।।

जितकन-काचल मौलि-मदोर्जित निर्भर-कुञ्जर कुम्भ-कुचे।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।16।

अर्थ- जिनकी चमक से चन्द्रमा की रौशनी फीकी पड़ जाए ऐसे सुन्दर रेशम के वस्त्रों से जिनकी कमर सुशोभित है, देवताओं और असुरों के सर झुकने पर उनके मुकुट की मणियों से जिनके पैरों के नाखून चंद्रमा की भांति दमकते हैं और जैसे सोने के पर्वतों पर विजय पाकर कोई हाथी मदोन्मत होता है वैसे ही देवी के उरोज (वक्ष स्थल) कलश की भाँति प्रतीत होते हैं ऐसी ही हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


विजित-सहस्र-करैक सहस्र-करैक सहस्र-करैकनुते।

कृतसुर-तारक सङ्गर-तारक सङ्गर-तारक सूनु-सुते।।

सुरथ-समाधि समान-समाधि समाधि-समाधि सुजात-रते।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।17।

अर्थ- सहस्रों (हजारों) दैत्यों के सहस्रों हाथों से सहस्रों युद्ध जीतने वाली और सहस्रों हाथों से पूजित, सुरतारक (देवताओं को बचाने वाला) उत्पन्न करने वाली, उसका तारकासुर के साथ युद्ध कराने वाली, राजा सुरथ और समाधि नामक वैश्य की भक्ति से सामान रूप से संतुष्ट होने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


पदकमलं करुणा-निलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे।

अयि कमले कमला-निलये कमला-निलयः स कथं न भवेत् ।।

तव पदमेव परम्पदमित्य-नुशीलयतो मम किं न शिवे।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।18।

अर्थ- जो भी तुम्हारे दयामय पद कमलों की सेवा करता है, हे कमला! (लक्ष्मी) वह व्यक्ति कमलानिवास (धनी) कैसे न बने? हे शिवे! तुम्हारे पदकमल ही परमपद हैं उनका ध्यान करने पर भी परम पद कैसे नहीं पाऊंगा? हे महिषासुर का मर्दन करने वाली बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


कनकल-सत्कल-सिन्धुजलैरनु-षिञ्चति तेगुणरङ्ग-भुवम् ।

भजति स किं न शची-कुच-कुम्भ-तटीपरिरम्भ-सुखानुभवम् ।

तव चरणं शरणं करवाणि नता-मरवाणि निवासि शिवम् ।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।19।

अर्थ- सोने के समान चमकते हुए नदी के जल से जो तुम्हे रंग भवन में छिड़काव करेगा वो शची (इंद्राणी) के वक्ष से आलिंगित होने वाले इंद्र के समान सुखानुभूति क्यों न पायेगा? हे वाणी! (महासरस्वती) तुममे मांगल्य का निवास है, मैं तुम्हारे चरणों में शरण लेता हूँ, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।


तव विमलेन्दु-कुलं वदनेन्दु-मलं सकलं ननु-कूलयते।

किमु पुरुहूत-पुरीन्दु मुखीसु मुखी-भिरसौ विमुखी-क्रियते।

ममतु मतं शिवनाम-धने भवती कृपया किमुत-क्रियते।

जयजय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ।20।

अर्थ- तुम्हारा निर्मल चन्द्र समान मुख चन्द्रमा का निवास है जो सभी अशुद्धियों को दूर कर देता है, नहीं तो क्यों मेरा मन इंद्रपूरी की सुन्दर स्त्रियों से विमुख हो गया है? मेरे मत के अनुसार तुम्हारी कृपा के बिना शिव नाम के धन की प्राप्ति कैसे संभव हो सकती है? हे महिषासुर का मर्दन करने वाली बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

 

 अयि मयि दीन दयालु-तया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे।

अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानु-मितासिरते।।

यदुचित-मत्र भव-त्युररी-कुरुतादुरु-तापमपा-कुरुते।

जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते।21।

अर्थ- हे दीनों पर दया करने वाली उमा! मुझ पर भी दया कर ही दो, हे जगत जननी! जैसे तुम दया की वर्षा करती हो वैसे ही तीरों की वर्षा भी करती हो, इसलिए इस समय जैसा तुम्हें उचित लगे वैसा करो मेरे पाप और ताप दूर करो, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय  हो।




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1000 Names of Lord Shiv / शिव सहस्त्रनाम / भगवान शिव के 1000 नाम

1000 Names of Lord Shiv / शिव सहस्त्रनाम / भगवान शिव के 1000 नाम हिंदी अर्थ सहित   भगवान शिव के 1000 नामों का वर्णन बहुत से हिंदू पुराणों में मिलता है जिसमे महाभारत के 13वे अनुसासन  पर्व के 17वे अध्याय को मुख्य माना जाता है| शिव सहस्त्रनाम का वर्णन अन्य पुराण जैसे- लिंग पुराण, शिव पुराण, वायु पुराण, ब्रह्मा पुराण, महाभागवत उपपुराण में मिलता है| भगवान शिव के 1000 नाम हिंदी अर्थ सहित     सूत उवाच श्रूयतां भो ऋषिश्रेष्ठा येन तुष्टो महेश्वरः। तदहं कथयाम्यद्य शैवं नामसहस्रकम्॥1॥ सूतजी बोले – मुनिवरो! सुनो , जिससे महेश्वर संतुष्ट होते हैं , वह शिवसहस्रनाम स्तोत्र आज तुम सबको सुना रहा हूँ|   विष्णुरुवाच शिवो हरो मृडो रुद्रः पुष्करः पुष्पलोचनः। अर्थिगम्यः सदाचारः शर्वः शम्भुर्महेश्वरः॥2॥ भगवान् विष्णुने कहा- अर्थ:- कल्याणस्वरूप , भक्तों के पाप-ताप हर लेनेवाले , सुखदाता , दुःख दूर करनेवाले , आकाशस्वरूप , पुष्प के समान खिले हुए नेत्रवाले , प्रार्थियों को प्राप्त होनेवाले , श्रेष्ठ आचरणवाले , संहारकारी , कल्याणनिकेतन , महान् ईश्वर|   चन्द्रापीड-श

श्री हरि विष्णु स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित / जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं

  श्री हरि विष्णु स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित / जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं   जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित इस स्तोत्र की रचना श्री आचार्य ब्रह्मानंद के द्वारा की गई है। इस स्तोत्र को भगवान श्री हरि   विष्णु की उपासना के लिए सबसे शक्तिशाली मंत्र कहा गया है। श्री हरि स्तोत्र के नियमित पाठ करने से भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी का भी आशीर्वाद मिल जाता है। श्री हरि स्त्रोत भगवान विष्णु के बारे में बताता है , उनके आकार , प्रकार , उनके स्वरूप , उनके पालक गुण और रक्षात्मक रूप को सामने रखता है| भगवान हरि का यह अष्टक जो कि मुरारी के कंठ की माला के समान है , जो भी इसे सच्चे मन से पढ़ता है वह वैकुण्ठ लोक को प्राप्त होता है। वह दुख , शोक , जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। Also Read: Vishnu shastranam / विष्णु 1000 नामावली  श्री हरि स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित   जगज्जाल-पालं चलत्कण्ठ-मालं, शरच्चन्द्र-भालं महादैत्य-कालं | नभो-नीलकायं दुरावार-मायं, सुपद्मा-सहायम् भजेऽहं भजेऽहं ||1|| अर्थ:   जो समस्त जगत के रक्षक हैं , जो गले में चमकता हार पहने हुए है , जिनका

विष्णु सहस्त्रनाम 1000 नाम Lord Vishnu 1000 Names with Hindi meaning thrusday vishnu mantr

  विष्णु सहस्त्रनाम मंत्र 1000 names of Lord Vishnu  विष्णु सहस्त्रनाम में विष्णु भगवान के 1000 नामो का वर्णन है इसके अंदर 108 श्लोक है| इसकी रचना महर्षि वेदव्यास जी ने की थी | इसका रोज जाप करने से खासकर वीरवार को इसका जाप करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है | यह हिंदू धर्म के सबसे प्रचलित और शुभ श्लोको में से है | इसका वर्णन महाभारत के अनुसासन पर्व में मिलता है जब बाणों की शैया पर लेते भीष्म से मिलने युधिस्ठिर आते है तब भीष्म उनको धर्म का नीति का ज्ञान देते हुए इसकी महिमा का वर्णन करते है| ज्योतिष में विष्णु सहस्त्रनाम के जाप के लाभ हमारे अन्तरिक्ष में बहुत से तारे, गृह(नवग्रह) और   27 नक्षत्रो का समूह है| इनमे से कुछ तो घूमते है और कुछ अपनी जगह पर स्थिर रहते  है| जब भी कोई बच्चा जन्म लेता है उस समय उन ग्रहों और तारो की आकाश में कता  स्थिति थी उसी के आधार उस बच्चे की कुंडली बनती है| जैसे जैसे इन ग्रहों का जगह  बदलती है जिसे गोचर कहते है व्यक्ति के जीवन में अलग अलग बदलाव आते है जिसका  अनुमान ज्योतिषी लगाते है| ज्योतिषी में भी विष्णु सहस्त्रनाम के जाप का  बहुत अधिक महत्व है | अन्त