चारो वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र) के कर्तव्य और धर्म
एक बार महात्मा सगर ने भृगुवंशी ऋषि और्व से सभी वर्णों
के धर्मो के बारे में जानने की इच्छा की तो ऋषि और्व ने उनको इसके बारे में जानकारी
दी थी| यह
जानकारी हिंदू धर्म के बहुत से ग्रंथो जैसे विष्णु पुराण, भागवत
पुराण और मनु समृति आदि में पढने को मिलती है| इनमे चारो
वर्णों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र के कर्तव्यो के बारे में बताया गया है|
किसी भी मनुष्य का जन्म किस वर्ण में हुआ है ये
उसके हाथ में नही होता लेकिन बहुत से ग्रंथो में ऐसी बाते कही गयी है जिससे स्पष्ट
होता है कि सभी मनुष्य अपने कर्मो के अनुसार अपना वर्ण निर्धारित कर सकते इसके लिए
वो स्वतंत्र होते है| 16 संस्कारो में भी वर्णन मिलता है कि जैसे बच्चे
के माता-पिता चाहे उसी तरह बच्चे का संस्कार कराके उसको उसी वर्ण के अनुसार शिक्षा
दे सकते है| कोई
मनुष्य जन्म से किसी भी वर्ण का हो सकता है लेकिन अपने कर्मो से अपना वर्ण निश्चित
करता है| कहीं ना कही ये बात हमारे समाज में लागू भी होने लगी है सभी लोग अपने अलग
अलग पेशे में लगे हुए है उसको देखा जाए तो हम उनके वर्ण का अंदाजा ही नही लगा सकते
कि वो किस वर्ण से सम्बन्ध रखते है| ऋषि वेदव्यास
जी ने भी कलयुग, स्त्री और शुद्र वर्ण को सबसे श्रेष्ठ बताया था|
चारो वर्णों के कर्तव्य और धर्म:-
ब्राह्मण का कर्तव्य
ऋषि और्व बताते है कि एक ब्राह्मण का कर्तव्य है कि
वो दान दे, यज्ञो
के द्वारा देवताओं का यजन करे, स्वाध्यायशील (खुदसे लगातार सिखने वाला) हो, नित्य
स्नान-तर्पण करे| ब्राह्मण को उचित है कि वृति के लिए दुसरों से यज्ञ कराए, औरो
को पढाये और सही तरीके से धन का संग्रह करे| ब्राह्मण को
चाहिए कि वो किसी का अहित ना करे, सभी प्राणियों के हित में तत्पर रहे, सभी
प्राणियों से मित्रता रखना उसका परम धर्म है पत्थर और पराये धर्म में समान बुद्धि
रखे|
क्षत्रिय का कर्तव्य
क्षत्रियो का कर्तव्य है की वो ब्राह्मणों को दान
दे, यज्ञो
का अनुष्ठान करे और अध्यनन करे| शस्त्र धारण करना और पृथ्वी की रक्षा करना ही
क्षत्रिय की परम आजीविका है| जो राजा अपने क्षत्रिय धर्म को स्थिर रखता है वह
दुष्टो को दंड देने और साधुओ का पालन करने से अपने अभीष्ट लोकों को प्राप्त कर
लेता है|
वैश्यों के कर्तव्य
लोकपितामह ब्रह्मा ने वैश्यों को पशुपालन,
वाणिज्य और कृषि ये जीविका के माध्यम दिए है| अध्यनन, यज्ञ, दान ये
कर्म उसके लिए भी विहित है|
शुद्रो के कर्तव्य
शुद्र का कर्तव्य यही है कि द्विजातियो (ब्राह्मण,
क्षत्रिय और वैश्य) की प्रयोजन सिद्धि के लिए कर्म करे और उसी से अपना पालन पोषण
करे| जब इन
चीजों से जीविका निर्वाह ण हो सके तब वस्तुओ को लेने बेचने अथवा कारीगिरी के कामो
से निर्वाह करे| अति
नम्रता, शौच,
निष्कपट स्वामीसेवा,
मन्त्रहीन यज्ञ, सतसंग
और ब्राह्मण की रक्षा करना ये शुद्र के प्रधान कर्म है| शुद्र
को भी दान देना उचित है, पितृश्राद्ध आदि कर्म करना, यज्ञो का अनुष्ठान
करवाना उचित बताया गया है|
सभी वर्णों के समान्य गुण:-
सभी प्राणियों पर दया करना,
सहनशीलता,
अमानिता, सत्य,
शौच, अधिक
परिश्रम ण करना,
मंगलाचरण (सही आचरण), प्रियवादिता (मधुर बोलना), मैत्री,
निष्कामता, अकृपणता
और किसी के दोष ना देखना ये सभी वर्णों के समान्य गुण बताए गये है|
आपति के समय ब्राह्मण को क्षत्रिय और वैश्य वर्ण
की वृति का पालन करना चाहिए| क्षत्रिय को वैश्य वर्ण की वृति अपनानी चाहिए ऐसा
पुराणों में लिखा गया है|
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