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Ganapathi Sahastranama Stotram in Hindi – श्री गणपति सहस्रनाम स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

  Ganapathi Sahastranama Stotram in Hindi – श्री गणपति सहस्रनाम स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित     व्यास उवाच अर्थ:- व्यास जी बोले, हे! लोकानुग्रह में तत्पर ब्रह्माजी गणेश ने अपने कल्याणकारी सहस्त्र नामो का उपदेश कैसे दिया वह मुझे बतलाइये| कथं नाम्नां सहस्रं स्वं गणेश उपदिष्टवान् । शिवाय तन्ममाचक्ष्व लोकानुग्रहतत्पर ॥ १ ॥ ब्रह्मोवाच : देवदेवः पुरारातिः पुरत्रयजयोद्यमे । अनर्चनाद्गणेशस्य जातो विघ्नाकुलः किल ॥ २ ॥ मनसा स विनिर्धार्य ततस्तद्विघ्नकारणम् । महागणपतिं भक्त्या समभ्यर्च्य यथाविधि ॥ ३ ॥ विघ्नप्रशमनोपायमपृच्छदपराजितः । सन्तुष्टः पूजया शम्भोर्महागणपतिः स्वयम् ॥ ४ ॥ सर्वविघ्नैकहरणं सर्वकामफलप्रदम् । ततस्तस्मै स्वकं नाम्नां सहस्रमिदमब्रवीत् ॥ ५ ॥ अर्थ:- ब्रह्मा जी बोले, पूर्व काल में त्रिपुरारी शिव ने त्रिपुरासुर तथा उसके तीनों पूरो पर युद्ध में विजय के उद्यत होने पर गणेश जी की पूजा नही की थी | अतः वे विघ्नों से व्याकुल हुए थे अतः उन्होंने अपने मन से उस विघ्न के कारण का निर्धारण करके महागणपति का भक्तिपूर्वक यथाविधि पूजन करके उनसे अपनी पराजय होने पर विघ्

श्री हरि विष्णु स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित / जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं

  श्री हरि विष्णु स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित / जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं   जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित इस स्तोत्र की रचना श्री आचार्य ब्रह्मानंद के द्वारा की गई है। इस स्तोत्र को भगवान श्री हरि   विष्णु की उपासना के लिए सबसे शक्तिशाली मंत्र कहा गया है। श्री हरि स्तोत्र के नियमित पाठ करने से भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी का भी आशीर्वाद मिल जाता है। श्री हरि स्त्रोत भगवान विष्णु के बारे में बताता है , उनके आकार , प्रकार , उनके स्वरूप , उनके पालक गुण और रक्षात्मक रूप को सामने रखता है| भगवान हरि का यह अष्टक जो कि मुरारी के कंठ की माला के समान है , जो भी इसे सच्चे मन से पढ़ता है वह वैकुण्ठ लोक को प्राप्त होता है। वह दुख , शोक , जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। Also Read: Vishnu shastranam / विष्णु 1000 नामावली  श्री हरि स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित   जगज्जाल-पालं चलत्कण्ठ-मालं, शरच्चन्द्र-भालं महादैत्य-कालं | नभो-नीलकायं दुरावार-मायं, सुपद्मा-सहायम् भजेऽहं भजेऽहं ||1|| अर्थ:   जो समस्त जगत के रक्षक हैं , जो गले में चमकता हार पहने हुए है , जिनका

हनुमान चालीसा तुलसीदास द्वारा रचित हिंदी अर्थ सहित Hanuman Chalisa Hindi

हनुमान चालीसा  तुलसीदास द्वारा रचित हिंदी अर्थ सहित Hanuman Chalisa Hindi    हनुमान चालीसा के रचयिता महाकवि तुलसीदास जी है | इसकी रचना अवधी-हिंदी भाषा में की गया है | इसमें हनुमान जी के द्वारा किये गये विभिन्न कार्यो का गुणगान किया गया है | इसके 40 श्लोक होने की वजहसे इसको चालीसा कहा जाता है | हनुमानजी जो भगवान शिव के अवतार है उनको 7 चिरन्जिवियो में से एक माना जाता है| हनुमान चालीसा एक बहुत ही शक्तिशाली मंत्र है जिसका नियमित जाप करने से भक्तो को भय से मुक्ति , साहस , क्लेशो से मुक्ति और सभी मनोकामनाए पूरी होती है | || दोहा || श्री गुरु चरण सरोज रज , निज मन मुकुरु सुधारि। बरनऊं रघुवर बिमल जसु , जो दायकु फल चारि।। बुद्धिहीन तनु जानिके , सुमिरो पवन-कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं , हरहु कलेश विकार ।।   अर्थ- श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं , जो चारों फल (धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष) को देने वाला है। हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन करता हूं। आप तो जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्

महर्षि वेदव्यास ने कलयुग को श्रेष्ठ, शुद्रो को साधू और स्त्रियों को धन्य क्यों बताया?/ vishnu puran/ कौन श्रेष्ठ?

  महर्षि वेदव्यास ने कलयुग को श्रेष्ठ, शुद्रो को साधू और स्त्रियों को धन्य क्यों बताया ?   जब भी ये चर्चा शुरु होती है कि   कौनसा युग अच्छा है ? , कौनसा वर्ण सबसे उत्तम और पुरुषो-स्त्रियों में कौन श्रेष्ठ है ? तो एकाएक सभी यही कहेंगे की सतयुग , ब्राह्मण और पुरुष ही सबसे उत्तम है | लेकिन विष्णुपुरण के 6ठे अंश के दुसरे अध्याय में एक वृतांत पढने को मिला जिसमे अत्यंत ज्ञानी ऋषि वेदव्यास जिनको धार्मिक ग्रंथो का जनक माना जाता है उन्होंने कलयुग को सबसे श्रेष्ठ युग बताया जिसको सभी युगों में सबसे खराब बताया गया है, चारो वर्णों ब्राह्मण, क्षत्रिय , वैश्य और शुद्र में से शुद्र सबसे श्रेष्ठ और स्त्रियों को सबसे धन्य बताया गया | Also Read : ऋषि पराशर/ Sage Prashar Also Read : ऋषि मैत्रये/ Sage Maitrye ऋषि पराशर विष्णुपुराण के वक्ता है जब ऋषि पराशर अपने शिष्य मैत्रेय को कलयुग के स्वरूप का वर्णन करते है | ऋषि पराशर कहते है की कलयुग में मनुष्य थोडासा प्रयत्न करने से ही जो अत्यंत पुण्यराशि को प्राप्त कर सकता है वही इसी पुण्य राशि को प्राप्त करने के लिए उसको सतयुग में महान तपस्य

आदित्य हृदयम स्तोत्र का हिंदी में मतलब / सूर्यदेव पूजा मंत्र/ Aditya Hridym Stotra (Agastaya rishi mantra)

    आदित्य हृदयम स्तोत्र का हिंदी में मतलब / सूर्यदेव पूजा मंत्र   आदित्य हृदय स्तोत्र का वर्णन रामायण के युद्ध काण्ड में मिलता है| जब श्री राम रावण के साथ काफी समय से युद्ध कर रहे थे तब सभी देवता गणों की नजर युद्ध पर टिकी हुई थी उनमे ऋषि अगस्त्य भी विद्यमान थे| रावण की सेना को अपनी सेना पर भरी पड़ता देख जब श्री राम व्याकुल ही गये तब अगस्त्यमुनि ने भगवान श्री राम को सूर्यदेव की उपासना करने को कहा था| इसी समय उन्होंने उनको आदित्य हृदय स्तोत्र मंत्र का ज्ञान श्री राम जी को दिया था | सूर्यदेव सूर्यदेव को वेदों में जगत की आत्मा माना गया है और माना भी क्यों ना जाए सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है| सभी जीव-जंतु , पेड़-पौधे और मनुष्य को जीवन देने वाला सूर्य ही है | यजुर्वेद में सूर्यदेव को ‘चक्षो सूर्यो जायत ’ कहकर सूर्य को भगवान का नेत्र माना गया है | प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्यदेव को संबोधित करता है | सूर्यदेव एक राजा के समान है जो दिन रात बिना रुके अपनी प्रजा की सेवा में तत्पर रहते है | सूर्य को हिंदू धर्म में अज्ञानता को दूर करने वाला और धार्मिकता का मार्ग रोशन करने वाला देव